
रक्षाबंधन, भाई-बहन के अटूट प्रेम का त्योहार है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और हमारे भाई-बहनों के साथ हमारे संबंधों का जश्न मनाता है।
इस अवसर पर, बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, जिससे भाई उसकी सुरक्षा का वादा करता है। यह पर्व उनके प्यार और संबंध को मजबूती देता है। इसके साथ ही, भाई बहन एक दूसरे को उपहार भी देते हैं और खुशियों का त्योहार मनाते हैं।
रक्षाबंधन सिर्फ एक त्योहार मात्र नहीं है, ये भाइयों और बहनों के बीच के संबंध को मजबूत करने का एक बहुत खूबसूरत जरिया भी है । इस विशेष दिन को आपके और आपके परिवार के लिए खास बनाने के लिए आप अपने भाई-बहन के साथ यादगार पलों को याद करें और उन्हें अपनी गहरी भावनाओं का व्यक्त करने का मौका दें।
रक्षा बंधन का अर्थ और महत्व !!
रक्षा बंधन का अर्थ है “सुरक्षा का बंधन”। इस दिन बहनें अपने कारीगरों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाइयों से सुरक्षा का वादा करती हैं। यह त्यौहार भाई-बहन के बीच प्यार और रिश्ते को मजबूत करता है।
रक्षा बंधन परंपरा: इस दिन बहनें अपने कारीगरों के लिए मिट्टी की राखियाँ बनाती हैं। वे राखी के रंग, डिज़ाइन और सजावट करके अपने कारीगरों की खुशी बढ़ाती हैं।
कैसे शुरू हुआ रक्षाबंधन का त्योहार, जानिए ये पौराणिक कथा !
रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस त्योहार की शुरुआत की कहानी राजा बलि, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है। राजा बलि ने भगवान विष्णु को रक्षा वचन देकर पाताल लोक में बांध दिया था। भगवान शिव की सलाह पर माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र में बांधा और विष्णु को मुक्त किया। यह कहानी श्रावण मास की महिमा और रक्षा बंधन के महत्व को दर्शाती है। आप जानते हैं कि सावन का महीना शिव भक्ति का त्योहार माना जाता है।
कैसे शुरू हुआ था रक्षाबंधन का त्योहार, जानें ये पौराणिक कथा !
क्या आप जानते हैं कि रक्षा बंधन का त्योहार कैसे शुरू हुआ, कैसे एक भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देकर उससे बंध जाता है। रक्षा बंधन की पौराणिक कथा क्या है, आइए जानते हैं।

हम सभी जानते हैं कि देवताओं और राक्षसों के बीच कितने युद्ध हुए। दैत्य सदैव देवताओं के अमृत पान, उनके स्वर्ग पर कब्ज़ा करने के प्रयास में रहते थे, जिसके लिए दैत्य कई वर्षों तक तपस्या में लीन रहते थे, भयंकर कर्म करते थे और ब्रह्मा, विष्णु और महेश से आशीर्वाद रूप में फल प्राप्त करते थे, जिसके कारण देवताओं को अनेक बुरे परिणाम भुगतने पड़ते थे।
राजा बलि जो दैत्यों के राजा थे, उनका जन्म दैत्य विद्यालय में हुआ था लेकिन उनका आचरण अन्य दैत्यों जैसा नहीं था क्योंकि महाराज बलि भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे। विष्णु भक्त होने के साथ-साथ वे देवाधि देव महादेव के भी बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने महादेव की भक्ति से अनेक सिद्धियां प्राप्त की थीं। राजा बलि ने 101 यज्ञ पूर्ण करने का अनुष्ठान किया था। तब देवताओं को चिंता होने लगी कि यदि राजा बलि ने यह अनुष्ठान पूर्ण कर लिया तो उनके हाथ से स्वर्ग और अमृत दोनों दैत्यों के पास चले जाएंगे, जिसके कारण दैत्य पृथ्वी पर आतंक मचा देंगे। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता श्री हरि विष्णु के समक्ष उपस्थित होते हैं। देवताओं की बात सुनकर श्री हरि विष्णु बटुक ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि के पास जाते हैं क्योंकि राजा बलि को महादानी भी कहा जाता है। इसीलिए वो अपने द्वार पर आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं जाने देते थे। यही भगवान विष्णु वामन अवतार में याचक के रूप में राजा बलि के पास आते हैं तब राजा बलि उनसे कुछ मांगने के लिए कहते हैं। जिस पर भगवान वामन उनसे तीन पग भूमि मांगते हैं। राजा बलि अपने वचन से बंधे हुए थे और उन्होंने उस बटुक ब्राह्मण को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। राजा बलि से वचन मिलते ही बटुक ब्राह्मण वामन ने विशाल रूप धारण कर लिया। उन्होंने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में धरती नाप ली। अब वो तीसरा पग कहां से नापते तब राजा बलि ने अपना वचन निभाने के लिए उन्हें तीसरा पग अपने सिर पर रखने की इजाजत दे दी।
राजा बलि की दानशीलता को देखकर भगवान विष्णु उनसे प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक और वरदान मांगा जिसके कारण भगवान विष्णु को वैकुंठ छोड़कर पाताल की रक्षा करनी पड़ी। उधर माता लक्ष्मी श्री हरि विष्णु से वियोग सहन नहीं कर पा रही थीं। माता लक्ष्मी इसके समाधान के लिए भगवान शिव जी के पास आती हैं। भगवान शिव माता लक्ष्मी से कहते हैं कि राजा बलि अपने वचन से बंधे हुए इंसान हैं। यदि माता लक्ष्मी राजा को किसी बंधन में बांध दें तो वे श्री हरि को वापस वैकुंठ ला सकती हैं।
भगवान शिव ने अपने नाग वासुकि को माता लक्ष्मी की सहायता के लिए उनके साथ जाने का आदेश दिया। माता लक्ष्मी पाताल के पास पहुंचती हैं। हर नाग कन्या का रूप धारण कर लेता है। वह राजा बलि के पास पहुंचती है और उनसे सहायता की गुहार करती है और उनकी सहायता करने आए लोग रक्षा सूत्र में बदल जाते हैं और माता लक्ष्मी यह रक्षा सूत्र राजा बलि को बांधती हैं।
राजा बलि माता लक्ष्मी को वचन देते हैं कि वे सदैव उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें मनोवांछित फल देंगे। तब माता लक्ष्मी अपने देवी रूप में आती हैं और उनसे श्री हरि को मांगती हैं। तब राजा बलि उससे कहते हैं कि आज के बाद यदि कोई भी स्त्री किसी भी पुरुष को रक्षा सूत्र बांधकर उसे अपना भाई मानकर उससे अपनी रक्षा का वचन मांग ले तो भाई अपनी बहन की रक्षा करने के लिए बाध्य हो जाएगा। भाई की कलाई पर सदैव सांप के रूप में रक्षा सूत्र बांधने से भाई के सभी संकट टल जाते हैं। तभी से श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर सांप के रूप में एक मजबूत रक्षा सूत्र बांधती है और भाई उस रक्षा के बंधन में बंध जाता है। इसीलिए इसे रक्षा बंधन का त्योहार कहा जाता है।
Thanks for sharing. I read many of your blog posts, cool, your blog is very good.